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डांसर से हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल-1



प्रेषिका : शोभा (बदला हुआ नाम)
पाठकों आप सबको मेरा बहुत बहुत प्यार !
मैं भी आप सबकी तरह ही एक बहुत बड़ी म्य्देसिपाणु-प्रशंसिका हूँ, मैं इसमें प्रकाशित होने वाली हर एक कहानी का लुत्फ उठाती हूँ क्यूंकि आजकल मेरा काम इन्टरनेट पर ज्यादा है, इसलिए मैंने भी अपना लैपटॉप खरीद लिया है और अब मुझे इन्टरनेट के जरिए आसानी से अपने उपभोक्ता से सम्पर्क करके अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए दलाल की ज़रूरत नहीं रही।
खैर !
मेरी उम्र अभी सिर्फ बाईस साल की है, मैं बी.ए (म्यूजिक) कर रही हूँ, कॉलेज के कार्यक्रमों में मेरी प्रस्तुति होती ही होती है पर मैं एक बहुत गरीब घर की लड़की थी, पिता का साया नहीं था, जब मैं आठ साल की थी, तब वो काम के लिए आबूधाबी गए लेकिन वापस नहीं आये। शुरु के दस महीनों के बाद ना कोई फ़ोन आता, ना चिट्ठी, ना पैसा।
हम तीन बहनें थी, हमारा भाई नहीं है, मेरा नंबर दूसरा है, बड़ी दीदी ने बी.ए में सिर्फ़ एक साल पढ़ाई की और फिर पैसों की तंगी के चलते वो छोटे मोटे काम देखने लगी ताकि मेरी और छोटी की पढ़ाई चलती रहे।
मुझे मालूम चल गया कि दीदी भी जिस कॉल सेंटर में काम करती थी, उसके साथ वो कुछ घंटे एक साइबर कैफे में भी जॉब करती थी। दीदी का रंग सांवला था, वो भी पैसे के लिए कॉल सेंटर के ज़रिये और साइबर कैफे में आने वाले कुछ अमीर मर्दों के साथ सो कर पैसा कमाती थी, माँ सिलाई का काम करती थी।
मुझे बचपन से नाचने का बहुत शौक था, स्कूल में भी मैंने इसमें पूरी रूचि लगे लगन के साथ रियाज़ करती, डांस करती।
मैं जैसे जैसे जवान होने लगी, जवानी मेरे ऊपर वक़्त से पहले और बहुत ज्यादा आने लगी। मैं इतनी खूबसूरत थी कि स्कूल में कई लड़के मुझ पर मरते थे, पतली सी कमर थी, मेरा सबसे बड़ा आकर्षण थे मेरे मम्मे, मेरी छाती जो बहुत तेज़ी से विकसत हुई। शुरु में मुझे अजीब लगता, जब जब बड़ी होती गई जानती गई कि हर लड़की को चाहत होती है कि उसकी फिगर मस्त हो और भगवान ने मुझे खूब ढंग से तराशा था, स्कूल के कुछ मर्द अध्यापक भी मुझे ललचाई नज़रों से देखने लगे, मुझे एहसास हुआ कि मेरे में कुछ है।
कॉलेज में जाते ही मेरा चक्कर चल निकला राहुल से ! वो बहुत बड़े घर का लड़का था, मैं एक गरीब घर से थी, वो जाट का बेटा, उसका बाप एम.एल.ए था। पहले हम सामान्य मिलने-जुलने लगे, फ़िर एक दिन उसने मुझे कहा कि कॉलेज से छुट्टी मार कर उसके साथ कहीं घूमने चलूँ।
मैं मान गई।
वो उस दिन अपनी लक्सरी कार में आया, कॉलेज के बाहर से मुझे लिया, मुझे लेकर वो शहर से बाहर अपने फार्महाउस गया। वहां उनका बहुत खूबसूरत घर था। मैं सपने देखने लगी।
तभी उसने मुझे हिलाया, बोला- कहाँ खो गई जान?
नहीं तो ! कहीं नहीं खोई !
उसने मुझे बाँहों में उठाया और अपने बेडरूम में ले गया।
यहाँ क्यूँ लेकर आए हो? राहुल, प्लीज़, ऐसा-वैसा मत करना ! यह सब शादी के बाद सही है !
माँ कसम ! मैंने यह सब दिल से उसको कहा, मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से माँ किसी मुसीबत में फंस जाए, मैं कहीं की ना रहूँ !
वो बोला- जान, तुम इतनी खूबसूरत हो कि शादी तक रुका नहीं जाएगा !
नहीं राहुल !
लेकिन उसने मुझे बिस्तर पर गिरा लिया और मेरे बग़ल में लेटते हुए अपनी टांग मेरी जांघों पर रख कर मेरे बालों की लट को पीछे किया ऊँगली से, मेरी आँखों से होते हुए होंठों पर ऊँगली फेरते गर्दन से नीचे मेरी कमीज़ में हाथ घुसा दिया और मेरे मम्मे दबाने लगा।
राहुल प्लीज़ छोडो और चलो यहाँ से !
चुप ! हम जल्दी शादी कर लेंगे !
उसने मेरी कमीज़ उतरवा दी और मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसने सलवार के नाड़े को खींच दिया।
नहीं राहुल ! यहाँ तक मत जाओ !
वो मेरे होंठ चूसने लगा और सलवार खिसकाते हुए मेरे बदन से अलग कर फेंकी और अपनी शर्ट खोलने लगा।
उसकी छाती पर घने बाल थे, नीचे उसने अपनी बेल्ट खोली और जींस का बटन खोल अलग कर दी, अब वह सिर्फ अंडरवीयर में था। उसका अंडरवीयर फूला हुआ था। मेरा विरोध नज़र-अंदाज़ कर वो अपने काम में लगा रहा। ब्रा की हुक़ खोल कर उसने जब मेरे मम्मे देखे तो देखता रह गया, छोटे-छोटे गुलाबी चुचूक और गोलमोल थे।
उसने उसी पल मुँह में लेकर मेरा चुचूक चूसा, मेरे जिस्म में तरंग सी दौड़ने लगी, मेरा हाथ उसके बालों में चला गया। वो मेरे मम्मों से खेलने लगा, मुझे मजा भी आने लगा। साथ में उसका हाथ मेरी पैंटी में चला गया, वहाँ मेरे दाने को चुटकी में लेकर मसला तो मैं मचल उठी।
मैं उसका विरोध करना चाह रही थी, चाह रही थी कि उसको अपने से अलग कर दूँ मगर उसने मेरा पूरा मम्मा मुँह में ले लिया था, जिससे मुझे मजा आ रहा था, साथ-साथ वह लगातार मेरे दाने को रगड़ रहा था।
उसने मेरी पैंटी भी उतार फेंकी, उसने अपना अंडरवीयर उतार दिया, मेरे मम्मे चूसते हुए उसने अपने खड़े लौड़े को मेरे दाने पर रख रगड़ लगाई तो मैं मचल उठी। उसने मेरे मम्मे छोड़े, ऊपर आया और मेरे हाथ में अपना खड़ा लौड़ा पकड़ा दिया।
मैंने पहली बार किसी मर्द का लौड़ा हाथ में लिया था- प्लीज़ मुझे छोड़ दो !
कुछ नहीं होगा ! डर मत रानी !
अपने लौड़े के सुपारे को मेरे गुलाबी होंठों पर फेरा, बोला- मुँह खोल !
नहीं नहीं !
उसने मेरा मुँह खुलवा कर ही दम लिया और बोला- चल चूस जैसे लॉलीपोप चूसते हैं।
मैं ना चाहते हुए उसके लण्ड को चूसने लगी, मुझे उलटी आने को हुई तो मैंने लौड़ा अपने मुख से निकाल दिया।
उसने दो मिनट मेरी चूत चाटी, जुबान से दाने को छेड़ा और फिर टांगें खुलवा बीच में आ बैठा।
और अपना सुपारा मेरी फ़ुद्दी के छेद पर लगाया और दबा दिया।
तीखी टीस निकली, मेरी मानो जान निकल गई- छोड़ दो मुझे !
लेकिन वो माहिर खिलाड़ी था, उसने धीरे धीरे करके अपना लौड़ा मेरी योनि में उतारना जारी रखा, देखते ही उसने अपना पूरा लौड़ा घुसा दिया और रुकते हुए बोला- अभी तुझे राहत मिल जाएगी !
उसने लौड़ निकाला, फिर डाला, निकाला-डाला।
मुझे अच्छा लगने लगा तो उसने स्पीड तेज़ कर दी।
कुछ ही देर में मैं खुद उकसाने लगी अपने कूल्हे उठा उठा कर !
बोला- देखा ! दिखी न जन्नत ! हाय क्या चूत है ! देख मेरे लौड़े ने इसका खून पी लिया !
क्या खून निकला है?
हाँ रानी ! आज जाट ने तेरी सील तोड़ डाली।
कहीं धोखा तो नहीं दोगे?
कभी नहीं !
आधे घंटे के बाद दोनों हांफ़ने लगे, उसका काम तमाम हो गया, मेरा भी !
अलग हुए, कपड़े पहने, बाल ठीक करके उसके साथ वापस शहर लौट आई।
यह मेरी जिन्दगी का एक बड़ा मोड़ था जहाँ से मैंने कॉलगर्ल बनने का रास्ता पकड़ लिया।
आगे अगले भाग में !