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मेरी अन्तर्वासना

मेरी अन्तर्वासना
लेखिका : ज़रीन
मैं कोई नारीवादी नहीं हूँ, लेकिन मैं आपको कुछ बताना चाहती हूँ जो शायद आप नहीं जानते होंगे। कुछ महिलाएँ यौन संबंध बनाने के लिए उतनी ही आतुर रहती हैं जितना आप लोग !
और मैं, ज़रीन, उनमें से एक हूँ !
मेरे कई प्रेमी बहुत चकित हो जाते हैं कि सुबह मेरी आंख खुलने से लेकर रात को सोने तक, मैं चुदाई के बारे में उससे भी अधिक सोचती हूँ जितना वे सोचते होंगे !
जबकि हर रात मैं कम से कम दो घण्टे चुदाई का खेल खेलती हूँ, फ़िर भी मुझे पूरी रात चुदाई के ही सपने आते रहते हैं !
मुझे लगता है मैं महा-चुदक्कड़ हूँ, लेकिन अगर आप सभी को चाहिए एक ऐसी लड़की जो कभी ना नहीं कहती तो वह मैं हूँ !
क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि मेरे अन्दर इतनी कामवासना कैसे जागृत हुई !
तो सुनिए !
बचपन से मैं अपने माँ-बाप को संभोग करते देखती थी, पहले तो मैं यह समझती रही कि पापा मम्मी को मारते हैं क्योंकि मम्मी हायऽऽऽ… आईऽऽऽ… मार दिया… चिल्लाती रहती थी लेकिन बाद में जब मैंने अपनी सहेलियों को इसके बारे में बताया तो वे हंसने लगी और कहने लगी कि तेरे पापा तेरी मम्मी को नहीं तेरी मम्मी की मार रहे होते हैं।
मैंने पूछा- मेरी मम्मी की? क्या मेरी मम्मी की ? मेरी मम्मी की क्या मारते हैं?
तो मेरी एक सहेली ने कहा- तेरी मम्मी की चूत तेरे पापा मारते हैं। जब तेरी मम्मी को चुदाई में मजा आता है तो तेरी मम्मी आनन्द से चिल्लाती है।
चूत और चुदाई ये दोनों शब्द मैंने पहले सुने तो थे लेकिन मैं इनका मतलब नहीं जानती थी।
मैंने अपनी सहेलियों से पूछा- चूत और चुदाई क्या होती है?
ओह ! बड़ी भोली बन रही है? जैसे कुछ पता ही ना हो !!
सच ! मुझे नहीं पता !
तो मेरी एक सहेली ज़ीनत ने मेरी स्कर्ट ऊपर उठा कर मेरी पेशाब वाली जगह पर हाथ फ़िराते हुए कहा- यह होती है चूत !
और चुदाई ? मैंने पूछा।
जब चूत में लण्ड डाल कर मजे लेते हैं तो उसे चुदाई कहते हैं।
अच्छा तो लण्ड क्या होता है और यह कहाँ मिलता है?
यह तो सलीम ही तुझे बताएगा।
सलीम मेरी सहेली का बड़ा भाई था।
मैंने पूछा- सलीम क्यों बताएगा?
तू खुद ही पूछ लेना उससे ! वैसे भी वो मुझसे तेरे बारे में पूछता रहता है।
मैं कैसे पूछूंगी सलीम से? तू ही पूछ कर बता देना ना !!
ना बाबा ना ! तू आज ही आ जाना शाम को मेरे घर और मिल लेना सलीम से ! वैसे भी आज घर में कोई नहीं होगा, मुझे मम्मी-पापा के साथ एक शादी में जाना है।
शाम छः बजे मैं ज़ीनत के घर गई तो सच में वहाँ सलीम अकेला था।
मैंने पूछा- सलीम भाई, ज़ीनत कहाँ है?
आई तो है तू मुझसे मिलने और पूछ रही ज़ीनत को?
मुझे शर्म तो बहुत आई- वो भाई ! वो ऽऽ मैं ऽऽ !
मेरे मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे।
सलीम ने मेरा हाथ पकड़ा और लगभग घसीटते हुए से मुझे अन्दर ले गए और मैं “नहीं भाई ! नहीं भाई ” कहती रह गई।
अब अन्दर जाकर क्या हुआ होगा- आप जानते ही होंगे।
मेरे मुख से सुनना चाहते हैं कि अन्दर जाकर कैसे, क्या हुआ?
मुझे आज रात ही फ़ोन करें ! मेरा नम्बर यहाँ है !
लेकिन सावधान रहना, उस दिन के बाद मेरी अन्तर्वासना इतनी बढ़ गई है कि मैं आपसे इतना ज्यादा चुदवा सकती हूँ कि आपका लौड़ा दर्द करने लगेगा।