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आकर्षण-4

आकर्षण-4

लेखिका : वृन्दा
अब धीरे धीरे मेरे शरीर में भी बदलाव होने लगे.. झांघें जो पहले तिलियों सी पतली थी अब थोड़ी भर गई.. ऊपरी हिस्से में भी काफी बदलाव हुए... छाती.. स्तनों के रूप में उभरने लगी.. एक गोल्फ बाल जितना आकार लेने लगी... और मैं खुद को अच्छी लगने लगी.. घर में ज्यादातर समय शीशे के सामने गुजरने लगा.. बालो को बिखेरना... फिर संवारना... लटों को कभी गालों पे झुलाना कभी आँखों पर घुमाना..
अपने पुराने छोटे हुए कपड़े फिर से पहन कर देखना.. तंग होती टी-शर्ट और घुटनों से ऊपर आती निक्कर.. मुझे वो सब पहनना अच्छा लगने लगा.. मेरी लम्बाई भी अब ५ फुट ४ इंच हो चली थी.. और वेदान्त तो पहले ही लम्बा हो हो के ऊँट बन गया था...
यौवन का यह बदलाव बेहद सुखद था.. तन और मन में आते बदलाव, कुछ कुछ होने जैसी अनुभूति होती थी चेहरे पे सदा रहने वाली मुस्कान.. लड़कों की मेरे स्तनों पर पड़ती तिरछी निगाहें अब मैं भांपना सीख गई थी... छेड़-छाड़ भी आम सी बात हो गई थी..!!!
गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं.. मैंने तैराकी सीखने का मन बनाया और वेदांत ने कराटे... उसका कराटे सीखने का शौक तो एक ही हफ्ते में फुस्स हो गया.. पर मेरा तैराकी में खूब मन लग रहा था... हमारा तैराकी का शिक्षक बहुत गठीला और स्मार्ट था.... वो मुझ पर नज़र रखता था.. पर मैं उस पर नहीं, वेदांत पर लाइन मारती थी... वेदांत मुझे रोज़ शाम को वहाँ से लेने आता ! इस तरह हम दोनों को साथ समय बिताने का भी वक़्त मिल जाता था...
हम दोनों के बीच हाथ पकड़ना .. गले लगना आम बात थी. गालों पर चुम्बन भी अब आम ही हो चला था.. खैर जैसे कैसे एक दूसरे से अलग रह कर छुट्टियाँ ख़त्म हुई.. मैंने अपने कॉलेज़ की बास्केट बाल टीम में भाग ले लिया.. मैं लड़कियों में काफी लम्बी थी... कॉलेज़ के बाद अभयास भी करना होता था.. ऐसे में मैं वेदांत पर ध्यान नहीं दे पा रही थी.. उससे बात होना अब कम हो गया था.. पर वो पहला आकर्षण ! उसकी चिंगारी अब तक दिल में धधक रही थी...
एक दिन दोपहर को.. कॉलेज़ में मैं किसी प्राध्यापिका के पास जा रही थी.. रास्ता खेल के मैदान से होकर गुज़रता था.. जहाँ लड़कों की बास्केटबाल टीम अभ्यास कर रही थी... मुझे अनिरुद्ध ने आवाज़ लगाई ...
अनिरुद्ध लड़कों की टीम का कप्तान था..
अनिरुद्ध : वृंदा आओ, तुम भी खेलो हमारे साथ... !!
मैं : नहीं ! मुझे रीवा मैडम ने बुलाया है... बाद में आती हूँ...!!!
अनिरुद्ध ने बास्केट बाल मेरे पीछे मारते हुए कहा : क्यों हिम्मत नहीं है क्या....?
मैंने जवाब में बास्केट बाल लेकर उछाली और गोल कर दिया...!!! दूर से वेदांत यह सब देख रहा था.. भले ही उसे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था..!!!
जब से हम दोनों के बीच बात कम होने लगी.. हम दोनों बस एक दूसरे को दूर से ही देख कर संतुष्ट हो लिया करते थे...!!!
अगली क्लास में मेरे पास एक कॉपी आई उसमें लिखा था- अभी इसी वक़्त हॉल में आकर मिलो.. - नीचे अंग्रेजी का वी बना था..
मैंने अध्यापिका से पानी पीने जाने की इजाज़त मांगी और हाल की तरफ गई..
वो हाल में आगबबूला हो मेरा इन्तजार कर रहा था... उसकी अधीरता उसके एक दिशा से दूसरी दिशा तक चलने से पता लग रही थी....
पहुँचते ही..
मैं : क्या हुआ..??
वेदांत ने मेरी तरफ गुस्से से देखा.. उसकी आँखों में खून उतर आया था...
मैं : हुआ क्या है? बोलेगा..??
वेदांत : उस चूतिये अनिरुद्ध ने वह क्या किया..??
मैं : गाली मत दे मेरे सामने...उसने जो किया उसका जवाब भी मैंने उसे दे दिया...
वेदांत : क्या जवाब दिया तूने वो मैंने भी देखा.. उसने जो तुझे गलत जगह बाल मारी उसका क्या..?? मैं उसके हाथ तोड़ दूँगा उस कमीने हरामजादे के...!!! जो बाल उसने मार कर दिखाई है न.. उसी की गाण्ड में न घुसाई तो में भी वेदांत नहीं...!!! बहन का लण्ड.. मादरचोद.. साला...
वो अभी भी इधर से उधर, उधर से इधर टहले जा रहा था... और मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि ये लड़के लोग इतनी गालियाँ सीखते कहाँ से हैं... हमें तो कोई नहीं सिखाता...!!!
मैं : एक बात बता तू ! क्यों इतना भड़क रहा है.. तू क्यों इतना गुस्सा हो रहा है....??? तू दोस्त ही है न मेरा..इस से ज्यादा तो कुछ नहीं है... तो फिर इतनी बेचैनी क्यों.. किस लिए..??
वेदांत : मैं.... मैं... वो...
थोड़ी देर रुकने के बाद.. अच्छा चल ठीक है मैं सिर्फ तेरा दोस्त सही... उसके कमीने की हिम्मत कैसे हुई मेरी जान से भी प्यारी दोस्त को बाल मारने की.. कभी अपनी बहन के भी मारी है उसने बाल.. गांडू.. साला!!!
बस गालियों की बरसात हुए जा रही थी...!!!! और मैं सुने जा रही थी.. उसका गुस्सा ठंडा ही नहीं हो रहा था...!!!
उसकी माँ चोदूँगा न तब साले को पता चलेगा गाण्ड में डंडा कैसे किया जाता है...बहुत स्याना बनता है.. कहता है.. तुझे चोदेगा... उसकी माँ बहन एक कर दूँगा मैं.... साला पड़ोसी की औलाद...उसके बाप के टट्टे उसकी माँ की चूत में घुसे तब यह टट्टेबाज़ पैदा हुआ था..
मेरा दिमाग खराब होने लगा था.. पता नहीं कौन-कौन सी गालियाँ बोली उसने.. मुझे तो सारी याद भी नहीं..
खैर मुझे बीच में झल्ला के बोलना ही पड़ा : तू थोड़ी देर शांत होयेगा... चल तुझे जो भड़ास निकालनी है छुट्टी के समय निकाल लियो.. चल अभी पानी पीने चल... जो करना है कर लियो लेकिन अभी नहीं शाम को छुट्टी के बाद.. ठीक है चल अब कक्षा में जा..
वेदांत : तू जा कक्षा में.. मैं इसकी आज इसकी बजा के रहूँगा...!!!
मैं वहाँ से चली आई.. कक्षा में भी मेरा ध्यान वहीं था वेदांत पर...!!! जाने आज वो क्या कर बैठेगा... कहीं अनिरुद्ध को मार ही ना डाले...!!!
छुट्टी के समय मैं कॉलेज़ के द्वार पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी... कि तभी छात्रों की निकलती भीड़ में से एक लड़का जोर से भागता हुआ बाहर निकला... वो अनिरुद्ध था....उसके पीछे पीछे वेदांत भी हाथ में बैट लिए उसके पीछे दौड़ा... मैं भी उनके पीछे गई.. मेरे अन्दर उनके जितनी भागने की क्षमता तो नहीं थी.. पर फिर भी मैं उनसे इतनी दूरी पर थी की उनकी क्रियाएँ देख सकूँ... वो दोनों पास वाले बगीचे में घुस गए कुछ देर बाद मैं भी वहाँ पहुँच गई..
वेदांत अनिरुद्ध को धड़ाधड़ मारे जा रहा था.. और गन्दी गन्दी गालियाँ दे रहा था...
वेदांत : वृंदा को चोदेगा तू.. हैं...? ले चोद वृंदा को.. ले.. ..!!!
अनिरुद्ध अधमरा सा उसकी लातें घूंसे खा रहा था.. पास ही टूटा हुआ बैट पड़ा था..उस पर अनिरुद्ध का खून लगा था..!!!
वेदांत : हरामी.. साले कभी अपनी माँ को भी चोदा है तूने.. मेरी जान को चोदेगा... तेरी बहन को सड़क पे नंगा करके नीलाम कर दूँगा.. अगर आगे से वृंदा के आस पास भी फटका तो...
उसे अनिरुद्ध पर जरा भी तरस नहीं आ रहा था... मैं उसका हाथ खींच कर बाहर ले जाने लगी..
हाथ छुड़ा कर वो वापिस गया और एक लात और उसे मारी और बोला.. याद रखियो आज की तेरी चुदाई.. ऐसा ना हो कल को मुझे तेरी गाण्ड फिर से बजानी पड़े...!!
मैंने गुस्से से वेदांत को आवाज़ लगाई...: अब छोड़ेगा उसे...??
वेदांत मेरे पास आया.. उसने मुझे गले लगा लिया.. उसकी तरफ देख कर बोला... : दोस्त है यह मेरी, प्यार करता हूँ इससे.. हाथ तो क्या आँख भी उठाई ना.. तो उस दिन के बाद किसी और को नहीं देख पायेगा तू...!!!
मेरी आँखें भर आई थी... पर साथ साथ होंठों पर मुस्कान भी थी.. अजीब सा लग रहा था.. रो रही थी या हंस रही थी पता नहीं... मैं उसे बाहर ले आई.. अनिरुद्ध के घर वालो को फोन करके इत्तिला दी.. कि अनिरुद्ध का एक्सिडेंट हो गया है...
अनिरुद्ध के हाथ पाँव टूट चुके थे उस दिन के बाद तीन महीने तक वो कॉलेज़ नहीं आया...!!!
अब मेरा और वेदांत के रिश्ते में भी स्पष्टता आ गई... आखिर उसने अपने प्यार का इज़हार जो कर दिया था..
चौथा भाग समाप्त
पर क्या वेदांत का इजहार सही मायनों में प्रेम का इज़हार था.. या केवल एक अच्छे दोस्त का दूसरे दोस्त के प्रति प्रेम.. क्या था वो... क्या इस प्रेम को उसकी मंजिल मिली या नहीं.... जानने के लिए पढ़ते रहिये आकर्षण