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राधा और गौरी-1

राधा और गौरी-1
षक : प्रेम सिंह सिसोदिया
राधा के पति की मृत्यु हुए करीब एक साल हो चुका था, उनका छोटा सा परिवार था, उनके कोई बच्चा नहीं हुआ तो उन्होने एक 10 वर्ष की एक लड़की गोद ले ली थी, उसका नाम गौरी था। वो भी अब जवानी की दहलीज पर थी अब। गौरी बड़ी मासूम सी, भोली सी लड़की थी।
मैं राधा का सारा कार्य किया करता था। मैंने दौड़ धूप करके राधा की विधवा-पैंशन लगवा दी थी। मुझे नहीं मालूम था कि राधा कब मुझसे प्यार करने लगी थी। मैं तो उसे बस उसे आदर की नजर से ही देखा करता था।
एक बार अनहोनी घटना घट गई ! जी हाँ ! मेरे लिए तो वो अनहोनी ही थी।
मैं राधा को सब्जी मण्डी से सब्जी दिलवा कर लौट रहा था तो एक अच्छे रेस्तराँ में उसने मुझे रोक दिया कि मैं उसके लिए इतना काम करता हूँ, बस एक कॉफ़ी पिला कर मुझे जाने देगी।
मैंने कुछ नहीं कहा और उस रेस्तराँ में चले आये। रेस्तराँ खाली था, पर फिर भी वो मुझे एक केबिन में ले गई। मुझे कॉफ़ी पसन्द नहीं थी तो मैंने ठण्डा मंगवा लिया। राधा ने भी मुझे देख कर ठण्डा मंगवा लिया था।
मुझे आज उसकी नजर पहली बार कुछ बदली-बदली सी नजर आई। उसकी आँखों में आज नशा सा था, मादकता सी थी। मेज के नीचे से उसका पांव मुझे बार बार स्पर्श कर रहा था। मेरा कोई विरोध ना देख कर उसने अपनी चप्पल उतार कर नंगे पैर को मेरे पांव पर रख दिया।
मैं हड़बड़ा सा गया, मुझे कुछ समझ में नहीं आया। उसके पैर की नाजुक अंगुलिया मेरे पैर को सहलाने सी लगी थी। मुझे अब समझ में आने लगा था कि वो मुझे यहाँ क्यों लाई है। उसके इस अप्रत्याशित हमले से मैं एक बार तो स्तब्ध सा रह गया था। मेरे शरीर पर चींटियाँ सी रेंगने लगी थी। मुझे सहज बनाने के लिए राधा मुझसे यहाँ-वहाँ की बातें करने लगी। पर जैसे मेरे कान सुन्न से हो गए थे। मेरे हाथ-पैर जड़वत से हो गए थे।
राधा की हरकतें बढ़ती ही जा रही थी। उसका एक पैर मेरी दोनों जांघों के बीच आ गया था। उसका हाथ मेरे हाथ की तरफ़ बढ़ रहा था। तभी मैं जैसे नीन्द से जागा। मैंने अपना खाली गिलास एक तरफ़ रखा और खड़ा हो गया। राधा के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तैर रही थी। मेरी चुप्पी को वो शायद मेरी सहमति समझ रही थी।
मुझे उसकी इस हरकत पर हैरानी जरूर हुई थी। पर घर पहुँच कर तो उसने हद ही कर दी। घर में मैं अपनी मोटर साईकल से सब्जी उतार कर अन्दर रखने गया तो वो मेरे पीछे पीछे चली आई