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सौ सुनार की एक लोहार की

सौ सुनार की एक लोहार की
प्रेषक : पुरुषोत्तम शास्त्री
मेरा नाम पुरुषोत्तम शास्त्री है। मैं एम ए का छात्र हूँ। यह मेरी प्रथम कहानी है।
मैं एक धर्मशाला में रहता था। पुष्कर का मेला चल रहा था और पूरी धर्मशाला यात्रियों से भरी थी। कईयों को कमरा तक नहीं मिला और उनको सर्दी में बरामदे में सोने को मिला।
मेरे कमरे में अकेला मैं था। बाथरूम कमरे के बाहर था और मैं कपड़े धो रहा था। मैंने देखा कि एक पच्चीस साल की औरत कब से मुझे देख रही है। कपड़े धोकर मैं कमरे में चला गया। कमरे के बाहर मेरी नेम प्लेट व नम्बर है।
उसने मुझे काल किया और कहा- कौन बोल रहे हैं?
मैं पुरुषोत्तम और आप?
मैं मोना सोनी !
क्या आप मुझे जानती हैं?
नहीं ! पर जानना चाहती हूँ।
इस तरह उसने एक घण्टे तक बात की होगी मेरे साथ।
बातों बातों में उसने बताया- तीन साल से मेरे पति ने मुझे छोड़ रखा है और मैं सेक्स की प्यासी हूँ।
बारह बजे तक बात करके मैं सो गया।
रात एक बजे उसका फ़िर फोन आया, बोली- बाहर बहुत ठण्ड है, क्या मैं तुम्हारे कमरे में सो सकती हूँ?
मैंने हाँ कर दी।
मैं उसे चोदने की सोच कर रोनान्चित हो उठा।
थोड़ी देर बाद वो मेरे कमरे में आ गई और दरवाजा बन्द कर दिया।
दरवाजा बन्द करके जैसे ही वो मेरे पास आई, मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया। मैंने उसके होंठों को चूमना शुरु कर दिया। धीरे धीरे मेरे हाथ उसके स्तनों पर गये और मैं उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबाने लगा।
वो बोली- इतनी भी क्या जल्दी है ? आज तुमसे चुदने ही आई हूँ, चुदा कर ही जाऊँगी।
मैंने उसे उठा कर बिस्तर पर लिटाया ओर उसकी साड़ी उतार दी और ब्लाउज खोल दिया।
अब वो मेरे सामने ब्रा और पेटीकोट में थी। उसकी चूचियाँ बाहर आने को बेताब थी। मैंने झट से उनको ब्रा की कैद आजाद कर दिया।
उसके चूचे बहुत बड़े और तने हुए थे। यह देखकर मेरा आठ इन्च का सांप फुफ़कार मारने लगा।