तीसरी कसम-3
प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना"पलक..."
"हुं..."
"पर तुम्हें एक वचन देना होगा !"
" केवू वचन ?" (कैसा वचन ?)
"बस तुम शर्माना छोड़ देना और जैसा मैं समझाऊँ, वैसे करती रहना !"
"ऐ बधू तो ठीक छे पण तमे केवू आवशो ? अने आवया पेला मने कही देजो.. भूली नहीं जाता ? कई गाड़ी थी, केवू, केटला वगे आवशो ?" (वो सब ठीक है पर आप कब आओगे? आने से पहले मुझे बता देना.. भूल मत जाना? कौन सी गाड़ी से, कब, कितने बजे आओगे)
मेरे मन में आया कह दूँ ‘मेरी छप्पनछुरी मैं तो तुम्हारे लिए दुनिया भर से रिश्ता छोड़ कर अभी दौड़ा चला आऊँ’ पर मैंने कहा,"मैं अहमदाबाद आने का कार्यक्रम बना कर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा।"
आज मेरा दिल बार बार बांके बिहारी सक्सेना को याद कर रहा था। रात के दो बजे हैं और वो उल्लू की दुम इस समय जरूर यह गाना सुन रहा होगा :
अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम
तुम्हें पाकर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ लेंगे हम ….
उसने अपनी और सुहाना की एक फोटो मुझे भेजी थी। हे भगवान् ! उसे देख कर मुझे तो लगा मेरी तो हृदय गति ही रुक जायेगी। हालांकि सुहाना के मुकाबले उसके नितम्ब और उरोज छोटे थे पर उसकी पतली पतली पलकों के नीचे मोटी मोटी कजरारी आँख़ें अगर बिल्लौरी होती तो मैं इसके सिमरन होने का धोखा ही खा जाता।
उसकी आँखें तो लगता था कि अभी बोल पड़ेंगी कि आओ प्रेम मेरी घनी पलकों को चूम लो। सर पर घुंघराले बालों को देख कर तो मैं यही अंदाज़ा लगाता रहा कि उसकी पिक्की पर भी ऐसे ही घुंघराले रेशमी बाल होंगे। गुलाबी रंग का चीरा तो मुश्किल से ढाई इंच का होगा और उसकी गुलाब की पत्तियों जैसी कलिकायें तो आपस में इस तरह चिपकी होंगी जैसे कभी सु सु करते समय भी नहीं खुलती होंगी।
आह...... आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैं उसकी पिक्की के दर्शनों के लिए कितना बेताब हो गया था। मैंने रात को बातों बातों में उससे पूछा था,"पलक तुम्हारी मुनिया कैसी है?"
"मुनिया… बोले तो ?" उसने बड़ी मासूमियत से पूछा।
"ओह.. दरअसल मैं तुम्हारी पिक्की की बात कर रहा था !"
"हटो.... तमे पागल तो नथी थाई गया ने ?" (तुम पागल तो नहीं हुए ?)
"प्लीज बताओ ना ?"
"नहीं मने शर्म आवे छे ?" (नहीं मुझे शर्म आती है ?)
"पर इसमें शर्म वाली क्या बात है ?"
"तमे तो पराविज्ञान ना वार माँ जानो छो ने ?" (आप तो पराविज्ञान भी जानते हो ना ?)
"तो ?"
"तमे ऐना थी जाननी लो ने केवी छे ?" (आप उसी से जान लो ना कि कैसी है?)
"पलक, तुम बहुत शरारती हो गई हो !" मैं थोड़ा संजीदा (गंभीर) हो गया था।
"पण मने तो मारा बूब्स ज मोटा करावा छे पिक्की तो ठीक छे ऐना वार मा जानी ने तमारे शु करवु छे ?" (पर मुझे तो अपने चूचे ही बड़े करवाने हैं, पिक्की तो ठीक ही है उसके बारे में जानकर आपको क्या करना है?)
हे भगवान् ! तुमने इन खूबसूरत कन्याओं को इतना मासूम क्यों बनाया है?
इनको 27 किलो का दिल तो दे दिया पर दिमाग क्यों खाली रखा है। अब मैं उसे कैसे समझाता कि मैं क्या जानना और करना चाहता हूँ।
हे लिंग महादेव, तू तो मेरे ऊपर सदा ही मेहरबान रहा है। यार बस अंतिम बार अपनी रहमत फिर से मेरे ऊपर बरसा दे तो मेरा अहमदाबाद आना ही नहीं, यह जीवन भी सफल हो जाए।
फिर उसने अपनी पिक्की का भूगोल ठीक वैसा ही बताया था जैसा मैंने उसकी फोटो देखकर अंदाज़ा लगाया था। उसने बताया कि उसकी पिक्की का रक्तिम चीरा 2.5 इंच का है और फांकों का रंग गुलाबी सा है। उसके ऊपर छोटे छोटी रेशमी और घुंघराले बाल और मदनमणि (भगान्कुर) तो बहुत ही छोटी सी है जो पिक्की की कलिकाओं को चौड़ा करने के बाद भी साफ़ नहीं दिखती पर कभी कभी वो सु सु करते या नहाते समय जब उस पर अंगुली फिराती है तो उसे बहुत गुदगुदी सी होती है और उसके सारे शरीर में मीठी सिहरन सी दौड़ने लगती है। एक अनूठे रोमांच में उसकी आँखें अपने आप बंद होने लगती हैं। उस समय चने के दाने जैसा उभरा हुआ सा भाग उसे अपनी अंगुली पर महसूस होता है। उसने बताया तो नहीं पर मेरा अंदाज़ा है कि उसने अपनी पिक्की में कभी अंगुली नहीं की होगी।
एक मजेदार बात बताता हूँ। उसने मुझे एक बार बताया था कि उसके दादाजी उसे पिक्की के नाम से बुलाया करते थे। जब वह छोटी थी तो वो उनकी गोद में दोनों पैर चौड़े करके बैठ जाया करती थी। मैंने उसे जब बताया कि हमारे यहाँ तो पिक्की कमसिन लड़कियों के नाज़ुक अंग को कहते हैं तो वो हंसने लगी थी। जब कभी मैं उसे मजाक में पिक्की के नाम से बुलाता तो वो भी मुझे पप्पू (चिकना लौंडा) के नाम से ही बुलाया करती थी। फिर तो मेरा मन उसकी पिक्की के साथ इक्की दुक्की खेलने को करने लगता।
उसने एक बार पूछा था कि क्या सच में मधु दीदी की जांघ पर तिल है ? और फिर मेरे पप्पू की लम्बाई भी पूछी थी। आप सभी तो जानते ही हैं वह पूरा 7 इंच का है पर मुझे अंदेशा था कि कहीं मेरे पप्पू की लम्बाई जानकर वो डर ना जाए और उसको पाने का खूबसूरत मौक़ा मैं गंवा बैठूं, मैंने कहा,"यही कोई 6 इंच के आस पास होगा !"
"पर आपने कहानियों में तो 7 इंच का बताया था?"
"ओह... हाँ पर वो तो बस कहानी ही थी ना !"
"ओह.. अच्छाजी.. फिर तो ठीक है !"
मैं तो उसके इस जुमले को सुनकर दो दिनों तक इसका अर्थ ही सोचता रहा कि उसने 'फिर तो ठीक है' क्यों कहा होगा।
"सर… एक बात पूछूं?"
"हम्म. ?"
"आपने जो कहानियाँ लिखी हैं वो सब सच हैं क्या?"
मेरे लिए अब सोचने वाली बात थी। मैं ना तो हाँ कह सकता था और ना ही ना। मैंने गोल मोल जवाब दे दिया,"देखो पलक, कहानियाँ तो केवल मनोरंजन के लिए होती हैं। इनमें कुछ बातें कल्पना से भी लिखी जाती हैं और कुछ सत्य भी होता है। पर तुम यह तो जान ही गई होगी कि मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था !"
"हाँ सर.. तभी तो मैंने भी आपसे दोस्ती की है !"
"ओह.. आभार तुम्हारा (धन्यवाद) मेरी पलक !" मैंने 'मेरी पलक' जानबूझ कर कहा था।
अगले 3-4 दिन ना तो उसका कोई मेल आया ना ही उसने फोन पर संपर्क हो पाया। मैं तो उससे मिलने को इतना उतावला हो गया था कि बस अभी उड़ कर उसके पास पहुँच जाऊँ।
फिर जब उसका फोन आया तो मैंने उलाहना देते हुए पूछा,"तुमने पिछले 3-4 दिनों में ना कोई मेल किया और ना ही फ़ोन पर बात की?"
"वो... वो.. मेरी तबियत ठीक नहीं थी !"
"क्यों? क्या हो गया था ?"
"कुछ नहीं.. ऐसे ही.. बस..!"
मुझे लगा पलक कुछ छुपा रही है। मैंने जब जोर देकर पूछा तो उसने बताया कि परसों उसकी बुआ आई थी। उसने और दादी ने पापा से मेरी शिकायत कर दी कि मैं सारे दिन फ़ोन पर ही चिपकी रहती हूँ तो पापा ने मुझे मारा और फिर कमरे में बंद कर दिया।
हे भगवान् ! कोई बाप इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। पलक तो परी की तरह इतनी मासूम है कोई उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता है।
"मैं तो बस अब और जीना ही नहीं चाहती !"
"अरे नहीं... मेरी परी... भला तुम्हें मरने की क्या जरुरत?"
"किसी को मेरी जरुरत नहीं है मुझे कोई नहीं चाहता। इससे अच्छा तो मैं मर ही जाऊं !"
"ओह.. मेरी शहजादी, मेरी परी, तुम बहुत मासूम और प्यारी हो। अपने बच्चे सभी को बहुत प्यारे लगते हैं। हो सकता है तुम्हारे पापा उस दिन बहुत गुस्से में रहे हों?"
"नहीं किसी को मेरे मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला !"
"परी क्या तुम्हें नहीं पता मैं तुम्हें कितना प्रे.. म.. मेरा मतलब है कितना चाहता हूँ?"
"तुम भी मुझे भूल जाओगे... कोई और नई पलक या सिमरन मिल जायेगी ! तुम मेरे लिए भला क्यों रोवोगे?"
पलक ने तो मुझे निरूत्तर ही कर दिया था। मैं तो किमकर्त्तव्य विमूढ़ बना उसे देखता ही रह गया।
मुझे चुप और उदास देख कर वो बोली,"ओह. तमे आ बधी वातो ने मुको.. तमे अहमदाबाद आवशो ?" (ओह. आप इन बातों को छोड़ो.. आप अहमदाबाद कब आयेंगे ?)
"मैं कल अहमदाबाद पहुँच रहा हूँ !"
"साची ? तमे खोटू तो नथी बोलता ने ? पक्का आवशो ने ?"(सच्ची ? आप झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना ? पक्का आओगे ना ?)
"हाँ पक्का !"
"खाओ मारा सम" (खाओ मेरी कसम ?)
"ओह.. बाबा, पक्का आउंगा मेरा विश्वास करो !"
कभी कभी तो मुझे लगता कि मैं सचमुच ही इस नन्ही परी से प्रेम करने लगा हूँ। मेरे वश में होता तो मैं इस परी को लेकर कहीं दूर चला जाता जहाँ हम दोनों के सिवा कोई ना होता। मैंने बचपन में 'अल्लादीन का चिराग' नामक एक कहानी पढ़ी थी। काश उस कहानी वाला चिराग मेरे पास होता तो मैं उस जिन्न को कहता कि मुझे अपनी इस परी के साथ कोहेकोफ़ ले जाए।
खैर... अब मैं इस जुगाड़ में था कि किस जगह और कैसे उससे मिला जाये। क्या उसे रात को होटल में बुलाना ठीक रहेगा ? पर सवाल यह था कि वो रात में यहाँ कैसे आएगी? मेरे मन में डर भी था कि कहीं किसी घाघ वेटर ने देख लिया और उसे कोई शक हो गया तो मैं तो मुफ्त में मारा जाऊँगा। मैं किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता था। नई जगह थी कोई झमेला हो गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
मेरी मुश्किल पलक ने आसान कर दी। उसने बताया कि कल दोपहर में वो होटल में ही मिलने आ जाएगी। मैंने उसे होटल का नाम पता और कमरे का नंबर दे दिया।
वैसे भी रविवार था तो मुझे कहीं नहीं जाना था। मैं उसका इंतज़ार करने लगा।
कोई 1:30 बजे रिसेप्शन से फोन आया कि कोई लड़की मिलने आई है। मैंने उसे कमरे में भेज देने को कह दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। मैंने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खोल लिया था ताकि मुझे उसके आने का पता चल जाए।
इतने में पलक सीढ़ियों से आती हुई दिखाई दी। मैं तो ठगा सा उसे देखता ही रह गया। उसने सफ़ेद रंग के स्पोर्ट्स शूज, हलके भूरे रंग (स्किन कलर) की कॉटन की पैंट और ऊपर गुलाबी रंग का गोल गले वाला टॉप पहन रखा था। मेरी पहली नज़र उसकी गोलाइयों पर ही टिक कर रह गई। उसके बूब्स तो भरे पूरे लग रहे थे। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। गहना रंग, गोल चेहरा, मोती मोती काली आँखें, सुतवां नाक, लम्बी गरदन, सर के बाल कन्धों तक कटे हुए और कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ। पतले पतली जाँघों के ऊपर छोटे छोटे खरबूजों जैसे कसे हुए नितम्ब।
इससे पहले कि मैं उसकी पैंट के अन्दर जाँघों के बीच बने उभार का कुछ अंदाज़ा लगता पलक बोली,"स… सर ? कहाँ खो गए?"
"ओह.. हाँ. प पलक अ... आओ… मैं तो तुम्हारी ही राह देख रहा था !" मैंने उसे बाजू से पकड़ कर अन्दर खींच लिया और दरवाजा बंद कर लिया। उसकी पतली पतली गुलाबी रंग की लम्बी छछहरी बाहें तो इतनी नाज़ुक लग रही थी कि मुझे तो लगा जरा सा दबाते ही लाल हो जायेंगी। उसकी अंगुलियाँ तो इतनी लम्बी थी कि मैं तो यही सोचता जा रहा था कि अगर पलक अपने हाथों में मेरे पप्पू को पकड़ ले तो वो तो इसकी अँगुलियों के बीच में आकर अपना सब कुछ एक ही पल में लुटा देगा।
"क्या आज ही आये हैं?"
"ओह.. हाँ मैं कल शाम को आ गया था !"
"तो आपने मुझे कल क्यों नहीं बताया?" उसने मिक्की की तरह तुनकते हुए उलाहना दिया।
"ब.. म.. " मैं तो उसे देख और अपने पास पाकर हकला सा ही गया था। वो मुझे घूरती रही।
बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से निकला,"ओह… वो मैं रात में देरी से पहुँचा था ना इसलिए तुम्हें नहीं बता पाया !"
"ओ.के. कोई बात नहीं … पता है मैं कितनी उतावली हो रही थी आपसे मिलने को?"
"हाँ हाँ... मैं जानता हूँ मेरी परी ! मैं भी तो तुमसे मिलने को कितना उतावला था !"
"हुंह… हटो परे.. झूठे कहीं के?" उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं कोई बहरूपिया या चिड़ीमार हूँ।
"ओह पलक अब छोड़ो ना इन बातों को.. और बताओ तुम कैसी हो?"
"हु ठीक छूं जी तमे केवा छो मधु दीदी केम छे ?" (मैं ठीक हूँ जी आप कैसे हैं और मधु दीदी कैसी हैं ?")
"हाँ वो भी ठीक ही होंगी !"
सच पूछो तो वो क्या पूछ रही थी और मैं क्या जवाब दे रहा था मुझे खुद पता नहीं था। आप तो जानते ही हैं कि मैंने कितनी ही लड़कियों और औरतों को बिना किसी झंझट के चोद लिया था पर आज इस नाजुक परी को अपने इतना पास पाकर मेरे पसीने ही छूट रहे थे। कैसे बात आगे बढाऊँ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
पलक के पास तो रोज़ ही प्रश्नों का पिटारा होता था, सवालों की एक लम्बी फेहरिस्त होती थी उसके पास।
एक बार मैंने उसे मज़ाक में कह दिया था कि पलक तुम तो इतने सवाल पूछती रहती हो कि थोड़े दिनों में तुम तो पूरी प्रेम गुरुआनी बन जाओगी। तो उसने बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए जवाब दिया था,"फिर तो आपको 10-12 साल बाद में पैदा होना चाहिए था !"
"क्यों ? फिर क्या होता ?"
"तमे आतला गहला पण नथी के मारी वात न समज्या होय?" (आप इतने बेवकूफ नहीं हैं कि मेरी बात ना समझे हों)
"प्लीज बताओ ना ?"
"जनाब वधरे रंगीन सपना जोवा नि जरुर नथी" (जनाब ज्यादा रंगीन सपने देखने की जरुरत नहीं है ?)
क्यों?"
"पेली.. मधु मक्खी (मधुर) तमने खाई जासे आने मने पण जीवति नथी छोड्शे (वो मधु मक्खी (मधुर) आपको काट खाएगी और मुझे भी जिन्दा नहीं छोड़ेगी) पलक खिलखिला कर हंस पड़ी।
कई बार तो लगता था कि पलक मेरे मन में छिपी बातें जानती है। मेरी और उसकी उम्र में हालांकि बहुत अंतर है पर देर सवेर वो मेरे प्रेम को स्वीकार कर ही लेगी। मैं अभी अपने ख्यालों में खोया ही था कि पलक की आवाज से चौंका।
"सर एक बात पूछूं ?"
"यस... हाँ जरुर !"
"क्या एक आदमी दो शादियाँ नहीं कर सकता?"
कहानी जारी रहेगी !