आकर्षण-5
लेखिका : वृंदावेदांत मेरे पास आया.. उसने मुझे गले लगा लिया.. उसकी तरफ देख कर बोला... : दोस्त है यह मेरी, प्यार करता हूँ इससे.. हाथ तो क्या आँख भी उठाई ना.. तो उस दिन के बाद किसी और को नहीं देख पायेगा तू...!!!
मेरी आँखें भर आई थी... पर साथ साथ होंठों पर मुस्कान भी थी.. अजीब सा लग रहा था.. रो रही थी या हंस रही थी पता नहीं... मैं उसे बाहर ले आई.. अनिरुद्ध के घर वालों को फोन करके इत्तिला दी.. कि अनिरुद्ध का एक्सिडेंट हो गया है...
अनिरुद्ध के हाथ पाँव टूट चुके थे उस दिन के बाद तीन महीने तक वो कॉलेज़ नहीं आया...!!!
अब मेरे और वेदांत के रिश्ते में भी स्पष्टता आ गई... आखिर उसने अपने प्यार का इज़हार जो कर दिया था..
मुझे अब लगने लगा था जैसे मेरी मांगी मुराद पूरी हो गई.. मेरा एक तरफ़ा आकर्षण अब प्रेम का रूप ले जग जाहिर होने लगा था.. होंठों की मुस्कान रोके नहीं रूकती थी.. चेहरे पर असीमित शान्ति.. क्रोध राग द्वेष से कोसों दूर हो चुकी थी, सब कुछ अच्छा-अच्छा लगने लगा था.. पूरी दुनिया हसीं हो गई थी..
पर इन सब ख्वाबों में खोई मैं वेदांत को भी पल पल अपने से दूर कर रही थी.. मेरे अपने एक तरफ़ी प्रेम के बहाव में बहने से .. हम दोनों में वार्तालाप अब कम होने लगी.. घंटों तक उसे देखते रहना.. उसके ख्यालों में खोये रहना.. सोचते रहना.. कुछ भी न कहना .. खुद से बातें करना.. हमारे बीच आने लगा था.. मैं न चाहते हुए भी उससे दूर होने लगी थी... मेरा यह आकर्षण हमारी दोस्ती को दीमक की तरह चाट रहा था...
एक दिन ...
मेरा जन्मदिन था.. उसने मुझे स्कूल में विश भी नहीं किया.. कोई उपहार नहीं, कोई फूल भी नहीं.. मेरी तरफ देखा तक नहीं.. बात भी नहीं की उस खडूस ने..
बड़े ही बेमाने दिल से मैं स्कूल से आने के बाद सोने चली गई, मम्मी ने बाहर जाकर जन्मदिन मनाने के लिए भी कहा.. पर मेरा बिल्कुल मन नहीं था, मेरी ज़िन्दगी के सबसे महतवपूर्ण इंसान को कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था कि मैं हूँ या नहीं.. उसके इज़हार के बाद उसका इतना रूखापन मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था... आँखों में आंसू भरे मैंने उसे एस.एम.एस. किया... "शायद आज तुम कुछ भूल गए... शायद आज हमारे बीच इतनी दूरियाँ आ गई हैं कि एक दूसरे की जिंदगी में क्या चल रहा है.. इस बात से तुम्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता... तुम मेरे पहले और आखिरी दोस्त हो ! - वृंदा "
उसके जवाब के इंतज़ार में मैं कब रोते रोते सो गई मुझे पता ही नहीं चला...
रात के बारह बजे, तकिये के नीचे पड़े फोन से घू घू घू घू की आवाज़ आई.. अध्खुली, नींद भरी आँखों से मैंने फोन देखा.. लिखा था वन अनरेड मैसेज..
मैंने मैसेज पढ़ा... लिखा था,"मुझे माफ़ कर दो ! आज मैंने पूरा दिन तुमसे बात नहीं की... मैंने जानबूझ कर ऐसा किया, मैं तुम्हें तुम्हारे जन्मदिन पर एक तोहफा देना चाहता था.. जिसे मैं सिर्फ हम दोनों के बीच ही रखना चाहता था.. अपनी बेरुखी के लिए माफ़ी चाहता हूँ.. वादा करता हूँ कि आज के बाद ऐसा नहीं करूँगा.. तुम्हारा तोहफा लिए मैं नीचे तुम्हारे घर के बाहर खड़ा हूँ.. जल्दी से आ आकर ले लो, वरना मैं कभी खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगा...!!!"
इतना पढ़ते पढ़ते ही मेरी आँखों की नींद उड़ चुकी थी.. दिल जोरो से धक् धक् करने लगा था.. जाने क्या लाया होगा वो.. एक बड़ा सा टैडी बीयर, या फिर ग्रीटिंग कार्ड.. या चोकलेट...मेरे पेट में कुलबुलाहट सी होने लगी..
मैं अपनी छोटी सी निक्कर और टीशर्ट में ही नंगे पावों सीढ़ी से नीचे उतर कर दरवाज़े तक गई.. बहुत ही धीमे से मैंने दरवाजा खोला... ताकि कोई जाग न जाये.. जाने क्यों मुझे पकड़े जाने का डर लग रहा था.. पता नहीं मेरे मन में चोर अपने आप में ही भयभीत हो उठा... कहीं किसी को पता लग गया तो... कहीं अंकल या मम्मी पापा ने देख लिया तो.. किसी और ने देख लिया तो...!!! अजीब सी उधेड़बुन में मैंने दरवाजे की चिटकनी खोली..
सामने वो खड़ा था... उसके हाथ में कुछ नहीं था... मेरा चेहरा थोड़ा उदास जरूर हुआ पर उसे करीब देख कर फिर भी मन में संतुष्टि थी...
"कहाँ है मेरा तोहफा?" मैंने आंखें बंद कर उसके सामने हाथ बढ़ा दिया...
उसने मेरा हाथ हाथों में भर लिया.. धीरे से मुझे दीवार की ओर सरकाया .... मेरी आँखें तब भी बंद ही थी... हल्की हल्की चलती ठंडी हवाओं से मेरे खुले बाल मेरे गालों को छू कर होंठो से लिपटते जा रहे थे.. चाँद की चाँदनी में हम दोनों अकेले ... तन्हा... एक दूसरे के सामने.. और बेहद करीब थे... मैं उसकी सांसें सुन पा रही थी..
फिर धीरे से वो मेरे और करीब आया...उसने अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से मेरे होंठों तक आती जुल्फों को मेरे कान के पीछे कर दिया..
मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.. अब मुझे उसकी सांसें भी महसूस होने लगी थी.. मैं अपनी आँखें खोलने ही वाली थी.. फिर वो हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी..
हम दोनों का वो पहला चुम्बन.. जो शायद मेरे लिए बयां कर पाना भी बहुत मुश्किल है... शायद एक या फिर दो मिनट ही चला होगा... पर उस खूबसूरत एहसास को लिखना... उफ्फ्फ्फफ्फ़
हमारे चुम्बन के बीच जैसा सब कुछ रुक गया.. हवाएँ... समय... उड़ते बादल.. रात की रानी की महक... सब कुछ थम सा गया था.. और सिर्फ हम दोनों थे उस एक पल में.. एक दूसरे से जुड़े.. एक दूसरे से बंधे...एक दूसरे में खो जाने के लिए... उस एक गर्म चुम्बन से बहार की ठंडक भी गर्मी में बदल गई थी...फिर धीमे से हम दोनों जब अलग हुए.. और मैंने आंखें खोली..
उसने मुझे कहा,"यह था तुम्हारा जन्मदिन का तोहफा..." " जन्म रात बहुत बहुत मुबारक हो... "
कुछ देर तो मैं एकटक खड़ी सोचती रही.. यह क्या हुआ अभी कुछ देर पहले मेरे साथ...?
फिर अचानक उसके शब्द मेरे कानों में गूंजने लगे,"अन्दर नहीं बुलाओगी... अन्दर नहीं बुलाओगी क्या.. हेल्लो ! मुझे ठण्ड लग रही है..."
मैंने उसे घर के भीतर लिया उसने भी अपनी चप्पल हाथ में ले ली ताकि कोई आवाज़ ना हो..
मैंने चिटकनी लगाई और उसे फुसफुसाते हुए सीढ़ियों से ऊपर जाने का इशारा किया...
वो ऊपर चला गया.. और मैं अपनी ही सोच में डूबी थी.. भावनाओं के भंवर में फंसी .. जिसे शायद प्रेम कहते हैं...स्नानगृह की ओर बढ़ गई.. अपने बाल सँवारे, मुँह-हाथ धोए.. कपड़े बदले और इत्र लगा कर अपने कमरे में गई..
वो फोन की लाइट से मेरे कमरे में भ्रमण कर रहा था.. दीवार पर लगी मेरी तस्वीरें गौर से देख रहा था..
अचानक हुए मेरे आगमन से वो थोड़ा हैरान सा हो गया.. मेरे इत्र की खुशबू ने पूरे कमरे को महका सा दिया था..
मैंने उसे बैठने के लिए कहा..
वो बैठ गया..
एक अजीब सी खामोशी के बीच हमसे कुछ बोले नहीं बन रहा था..
" तुमने मुझे स्कूल में क्यों नहीं विश किया?"
"तुझे क्या लगता है, स्कूल में तुझे मैं ऐसे कर सकता था..?"
"तो तू कोई उपहार नहीं ला सकता था?"
"क्या इससे बेहतर कोई और उपहार हो सकता था तेरे लिए.. तू ही बता..."
"तुझे यह खुराफाती आईडिया कैसे आया.?"
"चाहे खुराफाती भले था.. तुझे अच्छा लगा या नहीं..?"
अब मैं हाँ बोलती तो फंसती, ना बोलती तो झूठ होता.. वो हमेशा ऐसे टेढ़े सवाल करके मुझे फंसाता था..
"मेरी छोड़ तू अपनी बता.." मैंने भी बात घुमाई...
"अपनी क्या बताऊँ... मेरी तो दुनिया तुझ से ही शुरू है और तुझी पे ख़त्म.."
मुझे उसकी हर बात पर शर्म आ रही थी.. वैसे तो वो कई बार मेरे घर आया था.. मेरे कमरे में भी, पर आज कुछ अलग बात थी.. अलग कुछ ख़ास था.. आज वो एक अजनबी सा लग रहा था.. जैसे वो अब दोस्त नहीं रह गया था.. और वो उसकी चोर नज़रें मेरे दिल में गड़ी जा रहीं थी .. और उसका मेरी तस्वीरों को निहारना.. और मुझे देखकर चौंकना.. उसके दिल में जरूर कोई चोर था.. जिसे वो अपनी बातों से छिपा रहा था...
"अच्छा सुन... तूने यही वक़्त क्यों चुना..?"
" क्यूंकि ........" उसके पास कोई जवाब नहीं था..
फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला..." तू सवाल बहुत करती है.. अब अगला सवाल किया तो तेरा मुँह बंद कर दूंगा.."
"अच्छा..!!! करके तो दिखा जरा ....!!!! काट खाऊँगी तुझे..!!!"
" यह बात.. !!!"
वो आगे बड़ा मुझे अपनी बाँहों में खींचते हुए उसने मेरा ज़ोरदार चुम्बन लिया.. काफी देर मेरे होंठ चूस चूस के लाल कर देने के बाद अपना चेहरा हटा के बोला.. " अब करेगी और सवाल .. करेगी अब..??"
"हाँ...करुँगी .. करुँगी.."
उसने फिर मेरे होंठों से अपने होंठ लगा दिए.. मैं भी अब उसके होंठ का मज़ा लेने लगी थी... उसके हाथ मेरी कमर नाप रहे थे.. और मेरे हाथ उसके बाल संवार रहे थे.. हम दोनों आंखें बंद किये.. एक दूसरे के होंठों को चूसते रहे.. उसकी जीभ अब मेरे होंठों को भिगोने लगी थी... उसकी आँखों में अब भी शरारत थी... होंठों के रसपान के बाद वो मेरी गर्दन की ओर बढ़ गया.. और गर्दन पर तो उसने अपने दांत ही गड़ा दिए.. उसके इस प्रेम पर तो मैं सौ जहाँ लुटा देती... मैंने उसके कानों पर जीभ फिरानी शुरू कर दी.... और कब उसके हाथ मेरी कमर से मेरे स्तनों तक पहुँचकर मेरे स्तन मसलने लगे, मुझे पता ही नहीं चला...
वो बार बार अपने होंठ मेरी टीशर्ट के ऊपर ले जा कर मेरे स्तनों के चूचक चूसता और फिर होंठ चूसता... ऐसा लग रहा था... जैसे होंठों की मिठास से मेरे चुचूकों के दूध को मीठा करके पी रहा हो...!!!
थूक से गीली हुई सफ़ेद टीशर्ट में से भूरे चुचूक अब दिखने लगे थे.. और मैं अब उसे खुद से दूर करने में लगी थी... पर उसकी हर छुअन मुझे अच्छी लग रही थी.. मैं किसी तरह उसकी बलिष्ठ बाँहों से छूटी.. और अलग हो गई... हम दोनों एक दूसरे की आँखों से एक दूसरे का मन पढ़ रहे थे...!!!
पढ़ते रहिए !